आदमी
परिवार की उम्मीदें, जिम्मेदारियों का बोझ
बदन में बेतहाशा थकान लगती है।
है पुराने लिबास, और बालों में सफेदी
उसके चेहरे में हल्की मुस्कान लगती है।
आदमी की नजरो से, यूं जिन्दगी तो देखों,
मुश्किल है फिर भी,आसान लगती है।
लौट कर वो आए जब शाम को घर,
तब जरुरत का जरूरी समान लगती है।
दिनभर की मेहनत इनकी खुशियों के आगे
बीवी बच्चों से थोड़ी अनजान लगती है।
आदमी की नजरो से,यूं जिन्दगी तो देखों,
मुश्किल है फिर भी,आसान लगती है।
@साहित्य गौरव