आदमी
आदमियों की भीड़ मे बस इंसान अभी बाकी है।
जुर्म अजीम है तेरा बस इंसाफ अभी बाकी है।।
दिल की नफरतों का इजहार हुआ इस तरह।
नाकाबले आमाल का अंजाम अभी बाकी है।।
बेवजह की रंजिशें हर रोज बढ़ाए जाता है।
शराफत हमे अज़ीज़ है तेरी पहचान अभी बाकी है।।
इंसानियत कत्ल हुई मदिर में कभी मस्जिद में।
वे उसूल गुनहगारों की शिनाख्त अभी बाकी है।।
मेरी वंदिगी मुझको तेरी वंदिगी तुझे मुबारक हो।
इबादत राम की कर लूं तेरी अज़ान बाकी है।।
जाना है खुदा के पास तुझे भी और मुझे भी ।
आदमियत से गुजार दे जो सांस अभी बाकी है।।
मिलना है गर खुदा से तो चल नेकी की राह पर।
उछालेगा पत्थर तो मिटेगा नाम जो अभी बाकी है।
उमेश मेहरा
गाडरवारा (m,p,)
9479611151