आदमी
साधन-संपन्न
शक्ति-सामर्थ्य
रखते हुए भी
हंस चाल छोड़ व
बगुला भगत बन रहा है
आदमी
‘सत्य’ की चाह
रखते हुए भी
‘असत्य’ से घबराकर
‘शेर चाल’ छोड़
गीदड़ की तरह
दुम दबाए
भाग रहा है
आदमी
दूसरों की जूठी
रोटी खाकर
मालिक के ओसारे पर
बैठे कुत्ते की तरह
अपनों पर ही
भौंकता है
आदमी
थोड़ी-थोड़ी सी
बातों से घबराकर
दूसरों के सामने
बकरी सा
मिमियाता है
आदमी
अपनी हाथी
की ताकत भूलकर
गुुलामी स्वीकार
कहावत के अंकुश
को बर्दास्त करता है
आदमी
निजी स्वार्थ
की खातिर
‘कौए’ के घोसलों से
बच्चा गिराकर
‘कोयल चाल’ चल कर
अपने बच्चों को रखता है
आदमी
पता नहीं समचमुच आदमी
होने का अहसास कर
पूरी तरह आदमी
का व्यवहार कब
करेगा आदमी?
– 24 जनवरी 2013
बुधवार, दोपहर 3 बजे