आदमी
आदमी को आदमी से हैं खतरे बहुत
आदमी की हर चाल पे सम्भल जाता है – आदमी
फुरसत नहीं किसी को किसी से बात करने की
बहुत कम नज़र आजकल आता है – आदमी
गर पूछो कि सुबह सुबह कहाँ जाते हो भाईजान
बगैर किसी जवाब के निकल जाता है – आदमी
आदमी में खामी है औकात भूल जाने की
ओहदे को पाते ही बदल जाता है – आदमी
इस ख़ल्क़ में कोई सख्स खुशनसीब नहीं है
मिलने पर नई मुश्किल सुनाता है – आदमी
कितना ही क्यों ना जकड़े हो अपने दिल को सीने में
कहीं न कहीं हसीं चेहरे पर फिसल जाता है – आदमी
इसके पहले किसी ने कभी सोचा भी न होगा
पर आज सैर करने मंगल जाता है – आदमी
चाँद से नहीं आते हैं लोग हैवानियत मचाने
खुद इंसानियत के दंगल लगाता है – आदमी
आदमी को घर से फुटपाथ पर लाकर
फिर चौराहे पर कम्बल बंटवाता है – आदमी
सस्नेह ….. हरवंश श्रीवास्तव