आदमी
इन्सानों के दुनिया में,
ना जाने क्या- क्या बन जाते हैं।
खुद ही उलझते – खुद ही सुलझते,
खुद में खुद बन कर रह जाते ।
अन्य कि जरूरत क्या,
अपने ही वैरी बनें।
ना रिसते ना नाते,
सब गंवा जाते।
ना इज्जत ना सौहरत,
शराबी बन रही जाते।।
कभी यहां मानवों कि,
आदमी हि बाकी रह जाते।।।।