आदमी
एक अनजानी सुरंग सा हो गया है आदमी
कोई लूले अंग सा हो गया है आदमी
काटता मिलकर गला क्या अजब फितरत हुई
एक उड़ती सी पतंग सा हो गया है आदमी
नागफनियाँ बो रहा है चैनो अमन के बाग में
मानसिकता में अपंग सा हो गया है आदमी
लेकर कुल्हाड़ी हाथ में काटता अपनी जड़ें ही
बेशऊ बेढंग सा हो गया है आदमी
जोश उत्साह और उमंगें सब धराशायी मगन
हारी हुई सी जंग सा हो गया है आदमी