आदमी है, खाता है,
आदमी है, खाता है,
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आदमी है, खाता है,
खाकर भी गुर्राता है,
करता है खूब चोरी
साथ में सीना जोरी
कर के गर्व से चौड़ी छाती
लाल पीली आँख दिखाता है,
आदमी है, खाता है …….!!
जो जितना अधिक खाता है
उतनी प्रसिद्धि जग में पाता है,
घूस, मुनाफाखोरी, हेराफेरी,
चारा, हो चाहे रिश्वत खोरी,
सब में कमाल दिखाता है,
गरीब के पेट का निवाला,
काला धंधा हो या हवाला,
सब में खाता है………..!!
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा
चर्च में भी होता गड़बड़झाला
डाक्टर हो या अस्पताल
सबका मिलता बुरा हाल
कब्रगाह, ताबूत, कफ़न
सब मे इनका ज़मीर दफ़न
मरघट में ये स्वांग रचाता है,
मरे हुए को नाच नचाता है,
आदमी है, धर्म निभाता है ……!!
जितना खाता भूख बढ़ाता,
सृष्टि की हर शैं: को खाता,
दुःख देकर ये सुख हरता है
मनमानी हर पल करता है,
मरता तो भी कुछ करता है
लेकिन इसका नहीं भरता है
यही देव, यही विधाता है
श्रेष्ठता जताता है………!!
गाता है, सबको रुलाता है
सताता है, मुस्काता है,
ये सर्वभक्षी है, सब कुछ खाता है,
मगर फिर भी संवेदना जताता है!!
क्या करे बेचारा
आदमी है………..
चाव से खाता है, सब पचाता है,
फिर भी भूखे पेट सो जाता है !
!
स्वरचित: डी के निवातिया