आदमी कितना नादान है
आदमी कितना नादान है
अपने को समझ नहीं पाया है
मंदिर में शंख घंटे बजाता है
भगवन को जगाने के लिए,
पर खुद को न जगा पाया है |
भगवान को छप्पन भोग लगाता है
पर बाहर भूखे को खिला न पाया है
आदमी अभी तक आदमी ही रहा
वह इंसान अभी तक न बन पाया है ||
भगवान् को रेशमी वस्त्र पहनाता है
बाहर नंगे को कुछ न उढ़ा पाया है ,
देखो,ये आदमी की कैसे अनदेखी है
जिसको जरूरत है उसे न उढ़ा पाया है||
आर के रस्तोगी
गुरग्राम