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23 Oct 2021 · 1 min read

आदमी का कैसा ये किरदार है

——-ग़ज़ल——

आदमी का कैसा ये किरदार है
क्यों नहीं अपनों से करता प्यार है

दिल से अब घटने लगीं नज़दीकियाँ
नफ़रतों की उठ रही दीवार है

भाइयों में देखकर यूँ दुश्मनी
आदमीयत हो गई लाचार है

आदमी दौलत का भूखा हो गया
प्यार की इसको कहाँ दरकार है

सब फ़ना हो जाएगा इक दिन यहाँ
सिर्फ़ लाफ़ानी जहां में प्यार है

पाल कर नफरत दिलों में दुश्मनी
कर रहा क्यों ज़िंदगी मिस्मार है

चैन पाता है नहीं प्रीतम कभी
जिसको नफरत का लगा आज़ार है
9559926244
प्रीतम श्रावस्तवी
श्रावस्ती (उ०प्र०)

195 Views
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