आदमी अमीर हूँ
आदमी अमीर हूँ
खो चुका ज़मीर हूँ
जो न खुल के रो सकी
वो जिगर की पीर हूँ
जख़्म के जहान की
दर्द की नज़ीर हूँ
जाने किस हसीन की
ज़ुल्फ़ का असीर हूँ
सल्तनत लुटा चुका
प्यार में फ़कीर हूँ
सरहदों के नाम पर
खिंच रही लकीर हूँ
कह रहा खरी खरी
सिरफिरा कबीर हूँ
राकेश दुबे “गुलशन”
10/06/2016
बरेली