आदमी अनगढ़ा पत्थर है
आदमी
अनगढ़ा पत्थर है
खदानों से निकला अयस्क।
मुट्ठी में बंद किये
नये विहान का
स्वर्णिम दिवस।
शिल्पी में कौशल हो
गढ़ ले जो चाहे तो
राम का रूप,
रूप रावण का।
शिशु अथवा वृद्ध
अथवा बालक वयस्क।
शिल्पी,
संकल्प है अदमी का।
छेनी,हथौड़ा व तूलिका भी
आदमी है।
आदमी है
पौरूष,शौर्य,शक्ति का इतिहास।
एक नया रूप
जनम देता हर साँस।
चुभ जाये,टकराये
शूलों सा पत्थर सा।
निश्चित अनछुआ है।
खुद ही वह आग
खुद शीतल जलधारा।
शिल्पी का मन
झरे झरने का स्वर
दहके बनकर अँगारा।
जैसा दे रूप चाहे जैसी शकल।
वैसे तो आदमी
कुछ बनकर न जन्मा है।
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