आदत सी पड़ गयी है
आदत सी पड़ गयी है
खुद को छिपाने की
चाहते भी दे गयी, दगा
कुछ भी पाने की
सुर्ख महफिल में
तनहा सा दिखता हूं
दर्द की स्याह से
जब शब्दों को लिखता हॅू
हर सूरत लगती है
सिर्फ एक अनजानी सी ।
आदत सी पड़ गयी है
खुद को छिपाने की
चाहते भी दे गयी, दगा
कुछ भी पाने की
सुर्ख महफिल में
तनहा सा दिखता हूं
दर्द की स्याह से
जब शब्दों को लिखता हॅू
हर सूरत लगती है
सिर्फ एक अनजानी सी ।