आदतों में तेरी ढलते-ढलते, बिछड़न शोहबत से खुद की हो गयी।
आदतों में तेरी ढलते-ढलते, बिछड़न शोहबत से खुद की हो गयी,
बारिशों से भींगती रही आँखें मगर, जुदा मुक़द्दर के बादलों से हो गयी।
कदम बढ़ते रहे रास्तों पर, और मंज़िल अलविदा कह कर मुकर गयी,
ओस की बूंदों सी सुबह आयी मगर, घने सायों में उलझी रातें ठहर गयी।
तेरी आँखों के सपनों में बंधते-बंधते, नींदें रुस्वाइयों में टूट कर सो गयीं,
शिद्दतों से घरौंदे सजाये मगर, लहरों से टकराकर वो समंदर हीं हो गयीं।
सुकुनियत जो वादों में दिखी, वो बस लब्ज़ों की धोखेबाजियां हो गयीं,
तलाशती रही आँखें तेरे अक्स को, और वो ख़्वाहिशों की मृगतृष्णा में खो गयीं।
इंद्रधनुषी रंगों में तेरी रंगते-रंगते, कोरे रंग की ज़िन्दगी ये हो गयी,
रूह तो तेरी जुदा हुई मगर, धड़कनें मेरी ये बेवफ़ाई में खो गयी।
वादियों में शामें मुस्कुराती रहीं, पर सदायें हवाओं में तेरी गुम हो गयी,
दरख्तों पे सावन तो छाये मगर, सूखे पत्तों को लाचारगी डुबो गयी।
जन्मों के चक्रों में तुझे चुनते-चुनते, तन्हाईयाँ सजदों को आकर छू गयीं,
थामा हाथ तो तेरा हर बार मगर, बिछड़े यूँ की कायनात भी सिसक कर रो गयी।