* आत्म संतुष्टि *
” खुद के पास जो भी हो
उसमें संतुष्टि और खुशी हो
जो प्राप्त है वो ही पर्याप्त है
ऐसी सोच हम सब में बसी हो
देखें ना हम औरों को
बस खुद की हासिल
हर चीज से आत्मा की तृप्ति हो
झोपड़ी हो या महल
दो वक्त की रोटी सुकून की चाहे वह रूखी सूखी हो
सुमिरन सुबह शाम हो शाम का धूनी भी जलती हो
आनंद में जिए हम
जब रूह में ईश्वर समाया हो
ना तो ज्यादा से मन बावरा
और ना ही कम में दिल दुःखी हो
आत्मिक ज्ञान हो जाए कुछ ऐसा
की इच्छाओं की लालसा ही ना रहे
मस्त मग्न रहें ये जीवन
जब अपने भीतर कोई ना कमी हो”