आत्म ग्लानि
अमर आठवीं पास करके नौवीं क्लास में पहुंचा था । छुट्टियों के पश्चात पुनः स्कूल खुले पन्द्रह दिनों से ज्यादा हो चुके थे । मगर अमर स्कूल नहीं गया था।
अमर का पढ़ाई में जरा भी दिल नहीं लगता था दोस्तों और फिल्मों के चक्कर में स्कूल से गायब रहना उसके लिए मामूली बात थी । पिताजी अपने व्यापार में व्यस्त रहते और मां घर के कार्यों में । अतः कोई भी पूछने वाला ना था ।
स्कूल के दोस्त आकर कहते साकार सर रोज तुझे पूछते रहते है । “कौन है यह अमर इतने दिन हो गए अब तक शक्ल भी नजर नहीं आई ।”
तेरी वाट लगने वाली है ।
“कुछ नहीं होगा में देख लूंगा”
अमर लापरवाही से कह देता पर अंदर ही अंदर डर भी था कि जब भी सामना होगा सजा तो मिलनी तो तय है । डर तो बस इतना था कि पिताजी को बुला कर लाने को कहा तो पंगा हो जाएगा ।
कुछ दिनों बाद हिम्मत करके स्कूल पहुंचा
दोस्तों के कमेंट शुरू हो गए
” अबे आज तो तू गया काम से तेरी बैंड बजने वाली है ”
” साकार सर तुझे छोड़ने वाले नहीं है ”
“पक्का तुझे पिंसिपल के आफिस में लेकर जाएंगे”
अबे ,चुप रहो तुम लोग वैसे ही जान निकली जा रही है ऊपर से डरा रहे हो ।
“सर आ गए ” सब अपनी अपनी जगह में भागे । सर ने अटेंडेंस लेना शुरू किया । दो तीन लड़कों के बाद ही अमर का नाम आया ।
” यस सर “अमर ने कहा
सर ने नजर उठा कर देखा ,”तो आप है” सर ने व्यंगात्मक स्वर में पूछा ।
“बेंच पर खड़े हो जाओ ” फिर सब की अटेंडेंस ले अमर की ओर देखा
“समय मिल गया स्कूल आने का ” स्कूल खुले कितने दिन हुए है ,कहां थे अब तक ? तेज आवाज में पूछा ।
जी सर एक्सिडेंट हो गया था इसलिए नहीं आ सका सर
कैसा एक्सिडेंट
“जी बाइक से”
कौन चला रहा था
“जी मै ”
तब तो होना ही था ….. चोट तो दिखाई नहीं दे रही है, कहां चोट आई ?
अमर ने पैंट कि मोहरी व शर्ट की आस्तीन उठा कर दिखाई बैंडेज बांधा हुआ था ।
“बैठ जाओ ” जितनी पढ़ाई हो चुकी है सारे नोट्स तीन दिनों में पूरे कर के बताओ ।
” जी सर ”
तभी बेल बज गई पीरियड समाप्त हो गया।सबने अमर को घेर लिया और अमर किसी हीरो की तरह शेखी बघारने लगा ।
दो दिन पश्चात पिताजी ने बताया कि तेरे सर मिले थे । एक्सिडेंट के विषय में पूछ रहे थे अभी कैसा है तो मैंने कहा कोई एक्सिडेंट नहीं हुआ है वो तो ठीक है ।
सर को पता लगने के बाद भी कुछ नहीं पूछा “अब कैसा है”
अमर आत्म ग्लानि से भर गया, झूट नहीं कह सका और रोते हुए कुछ सच सच बता कर माफ़ी मांगी ।
तुम अच्छे लड़के हो अपनी जिम्मदारियों को समझो और पधाई में ध्यान लगाओ ।वहीं बाद में तुम्हारे काम आएगी । सर के इस व्यवहार ने अमर को पूरी तरह बदल दिया और जी जान से पढाई में जुट गया ।
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© गौतम जैन ®