आतमा की सबल लौ दिल में जगा लो/तभी तो सद्ज्ञान का सम्मान होगा
सहजता के आवरण को अब सँभालो|
अहंकारी मैल को धोकर निकालो |
दिव्यता की कसौटी पर कसो निज को |
आतमा की सबल लौ दिल में जगा लो|
तभी तो सद्ज्ञान का सम्मान होगा|
स्वयं द्वारा ही स्वयं का मान होगा|
लिखेगा इतिहास तेरा, समय खुद ही |
दिल को भी ऊंचाइयों का भान होगा|
बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता