आत्मा की शांति
वृद्धाश्रम पहुँचे रासबिहारी जी से गोविंद जी ने पूछा- ” कैसे हैं भाई साहब? चिंता मत करिए, कुछ दिन बाद मन लगने लग जाएगा। यहाँ सभी लोग बहुत अच्छे हैं। एक दूसरे का खूब ख्याल रखते हैं।”
“ख्याल तो खूब हमारे बच्चों ने भी रखा। न बेटों के घर में हमारे लिए जगह थी और न बेटी के घर में।”
“अब जब अंतिम सहारे के रूप में यह जगह मिली है तो मन तो लगाना ही पड़ेगा।”
“आपके घर में कौन-कौन है?” गोविंद जी ने पूछा।
“दो बेटे हैं, जो मल्टीनेशनल कम्पनी में काम करते हैं और बड़ी बहू बैंक में मैनेजर है और दूसरी छोटी बहू डाॅक्टर है। बेटी और दामाद भी हैं। दामाद आर्मी में कैप्टन है।”
“अरे वाह , आपका तो भरा-पूरा परिवार है। बच्चे खुश रहें, हम बड़े-बूढ़ों को और क्या चाहिए इस उम्र में। सही बात है कि नहीं।”
” बिल्कुल सही कह रहे हैं आप। यहाँ आकर मुझे बहुत सुकून महसूस हो रहा है।”
“सबसे बड़ी बात दुनिया की एक सच्चाई पता चली कि कोई किसी का नहीं। न बेटा, न बहू और न बेटी , न दामाद। सबकी बहुत चिंता रहती थी। अब , इस आश्रम में रहते हुए प्राण निकलेंगे तो आत्मा भटकेगी नहीं क्योंकि कोई अपना इस संसार में है ही नहीं।”
डाॅ बिपिन पाण्डेय