आत्मा की आवाज
पूछ रही है आत्मा मेरी, मुझसे आज यह रह-रह कर
कहां चला ये मन मूरख, इस दुनिया में वह वह कर
है तू मानव, मानवता है धर्म तेरा,
है ये झूठीं चमक नहीं है नया सवेरा
क्यों भूल गया है रे मन, सीधी सादा बातों को
ढूंढ रहा है जुगनू कोई, चमक भरी इन रातों को
झूठी शान वान पर मन, जितना बढ़ता जाएगा
ये मन मूरख मेरे, सुख शांति कभी ना पाएगा
पैदा हुआ है मानव तन में, परोपकार कुछ करने को
किंतु लगा है मन मूरख, अंधी दौड़ में चलने को