आत्मरक्षा
आत्मरक्षा
दुबली-पतली 22 वर्षीया रेशमा एम.ए. फायनल ईयर की एक होनहार स्टूडेंट थी। पढ़ाई-लिखाई ही नहीं, अच्छे व्यवहार और खूबसूरती में भी वह अपने कॉलेज में नंबर वन थी। कुछ महीने पहले ही उसके पिताजी का देहांत हो गया था।
एक दिन शाम को वह कॉलेज से घर लौट रही थी, तो कुछ गुंडों ने उसका अपहरण कर लिया। गुंडे उसके मुँह और आँखों में कपड़ा बाँध दिए थे। जब उसे खोला गया, तो उसने खुद को एक कमरे में हाथ-पैर से बंधा हुआ पाया, जहाँ दो गुंडे उसकी इज्ज़त से खेलने को उतावले हो रहे थे।
“देखो डॉर्लिंग, यहाँ तुम्हें चीखने-चिल्लाने का कोई लाभ नहीं होगा। हमारा यह फॉर्म हाउस शहर से दूर एक सुनसान इलाके में बना है। यहाँ तुम्हारी आवाज़ सुनकर कोई नहीं आएगा।” एक गुंडे ने शैतानी हँसी हँसते हुए कहा।
“देखो, हम तुम्हारे दुश्मन तो हैं नहीं। बस कुछ ही देर की बात है। हमें मजा लेने दो और तुम भी मजे लो। हमें मजा लेने से तो तुम नहीं रोक सकती। अब तुम मजा लोगी या नहीं, ये तुम पर डिपेंड करता है। इसके लिए हम तुम्हें मजबूर नहीं करेंगे। हाँ, अगर तुम चुपचाप मान जाती हो, तो हम तुम्हें सुरक्षित वहीं छोड़ आएँगे, जहाँ से उठाए हैं।” दूसरे गुंडे ने उसके सीने और गाल को छूते हुए कहा।
रेशमा को समझते हुए देर नहीं लगी कि अब इन दुष्टों से बचना आसान नहीं है। उसके दोनों हाथ और पैर बंधे हुए थे। उसने दिमाग से काम लेना उचित समझा।
कुछ सोच कर वह बोली, “देखो, मैं आप लोगों को मना नहीं करूँगी। आप लोगों की तरह मुझे भी मजा लेना है, पर मेरी भी एक शर्त है।”
“वाओ, गुड गर्ल। बोलो – बोलो, हमें तुम्हारी सारी शर्तें स्वीकार हैं।” पहले गुंडे ने कहा।
रेशमा बोली, “मैं अकेली हूँ और आप लोग दो हैं। मैं चाहती हूँ कि आप लोग बारी-बारी से मेरे पास आएँ, ताकि आप भी पूरा इंज्वॉय करें और मैं भी कर सकूँ।”
दूसरा गुंडा खुश होकर बोला, “बस इत्ती-सी बात। हमें तुम्हारी शर्त स्वीकार है।”
रेशमा बोली, “मैं आप लोगों को एक और जरूरी बात बता देना चाहती हूँ ताकि बाद में आप ये न कह सकें कि मैंने आपसे छुपाई।”
दूसरा गुंडा बोला, “अब जब तुम तैयार हो ही गई हो, तो फिर क्या छिपन-छिपाई। बताओ डार्लिंग, जल्दी करो। हमसे अब और इंतजार बर्दाश्त नहीं हो रहा है।”
रेशमा बोली, “मेरे पिताजी की छह माह पहले ही एड्स से मौत हुई है। उनसे मेरी माँ और मुझे भी हो गया है। माँ थर्ड स्टेज में है जबकि मेरा अभी सेकंड स्टेज ही है। तो प्लीज, आप लोग जरा संभल कर रहिएगा।”
पहला गुंडा पीछे हटते हुए आश्चर्य से बोला, “क्या एड्स ?”
रेशमा को अपनी बात बनते दिखी। वह एकदम सहज रूप से बोली, “हाँ एड्स।”
दूसरा गुंडा बोला, “झूठ बोलती है साली। एड्स के नाम से हमें डराना चाहती है। हम क्यों यकीन करें, कि तुम्हें एड्स है।”
रेशमा बिना विचलित हुए बोली, “मत करो यकीन। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। आ जाओ मेरे पास एक-एक करके। बताना मेरा फर्ज था, जो मैंने निभाया। आप चाहें तो जिला अस्पताल फोन कर मेरे पिताजी की मौत का कारण जान सकते हैं। और हाँ, इतना तो आप लोग भी जानते ही हैं कि एड्स रोगियों को रेगुलर एआरटी की गोली लेनी पड़ती है। वह मेरे पर्स में हमेशा रहता है। आप चेक कर सकते हैं मेरा पर्स।”
गुंडों को अस्पताल फोन कर तसल्ली करने से बेहतर रेशमा का पर्स जाँच करना लगा। पहला गुंडा लपक कर रेशमा का पर्स निकाल कर देखा। अंदर एआरटी टेबलेट देखकर उसका कलेजा दहल गया। वह अपने दाहिने कोहनी को देखने लगा, जहाँ रेशमा का किडनैप करते समय उसने दाँत से काटा था। वह लगभग रोते हुए दूसरे गुंडे से बोला, ”गुरु, लड़की एकदम सही कह रही है। साली को एड्स है। इसने दाँतों से काटकर मुझे संक्रमित कर दिया है। मारे गए गुरु। खाया पिया कुछ नहीं, गिलास तोड़ा ऊपर से…”
“क्या एड्स… एआरटी…. हाथ दिखा अपना…चिंता मत कर खून नहीं निकला है। डरने की बात नहीं है। डिटाल से हाथ धो ले जल्दी।” दूसरे ने समझाया।
रेशमा अपनी योजना की सफलता पर बहुत खुश थी पर वह जाहिर तौर पर पूर्ववत बनी रही। वह मन ही मन अपने पिताजी से माफी मांग रही थी, “पिताजी, मुझे माफ कीजिएगा। इन दुष्टों से बचने के लिए मुझे झूठ बोलना पड़ रहा है कि आपकी मौत एड्स से हुई है।” वह ऐसी ही किसी अनहोनी की आशंका से एआरटी की गोलियाँ पर्स में लेकर चलती थी।
दूसरा गुंडा हैरान परेशान कमरे में टहल रहा था। 3-4 मिनट बाद पहला गुंडा हाथ-पैर धोकर आया और बोला, “जान बची लाखों पाए, लौट के बुद्धू घर को आए। बच गया, कहीं खून-वून निकल गया होता तो आज मैं भी नप जाता।”
दूसरा गुंडा बोला, “अब इसका क्या करें ?”
पहला गुंडा बोला, “करना क्या है गुरु, उठा के फेंक दो साली को। मूड तो छोड़ो पूरा दिन खराब कर दिया है साली ने।”
उन्हें शक न हो, इसलिए रेशमा बोली, “देखिए, ज्यादा डरने की जरूरत नहीं है। मेरा एड्स अभी सेकंड स्टेज में ही है। उतना संक्रामक नहीं है। यदि आप लोग चाहें, तो मरने के पहले मैं भी कुछ मजा ले लेती…।”
“चुप्प, चुप कर साली। बड़ी आई मजा लेने वाली। पता नहीं आज सुबह सुबह किसका मुँह देख लिया था…. पूरा दिन खराब कर दिया और अब मजे लेगी भो….” पहला गुंडा गंदी गाली देते हुए बोला।
दूसरा गुंडा बोला, “अगर तुम जिंदा रहना चाहती हो, तो चुपचाप रहो हाथ पैर मत चलाओ। अभी हम तुम्हारी आँखों और मुँह में पट्टी बांध कर वहीं छोड़ आएँगे, जहाँ से तुम्हें उठाए थे। वर्ना यहीं गोली मारकर ढेर कर देंगे। हम नहीं चाहते कि तुम एड्स की बजाय हमारी गोली से मरो।”
रेशमा ने चुप रहने का प्रॉमिस किया। दोनों गुंडे उसकी आँखों और मुँह में पट्टी बांधकर वहीं छोड़ दिए, जहाँ से उसे उठाए थे।
एड्स के नाम से वे गुंडे इतने डर गए थे कि उन्होंने रेशमा का पर्स लौटाना याद नहीं रहा। पर्स में रेशमा का मोबाइल था। इससे पुलिस को गुंडों का लोकेशन ट्रेस करना बहुत आसान हो गया और वे कुछ ही घंटों के भीतर सलाखों के पीछे पहुँच गए।
अपनी सूझबूझ और त्वरित बुद्धि से रेशमा सकुशल घर पहुँच गई।
-डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायगढ़, छत्तीसगढ़