आत्मचिंतन
आत्मचिंतन
सबको संभालते संभालते
अब बिखरने लगा हूँ प्रिये
रात भर जाग जाग कर
तारे गिनने लगा हूं प्रिये
बिन ख़ता के जो सजा
पाए जा रहा हूँ मैं
आत्मचिंतन कर गलतियों को
ढूंढ़ने लगा हूँ प्रिये
संजय श्रीवास्तव
बालाघाट (मध्य प्रदेश)
आत्मचिंतन
सबको संभालते संभालते
अब बिखरने लगा हूँ प्रिये
रात भर जाग जाग कर
तारे गिनने लगा हूं प्रिये
बिन ख़ता के जो सजा
पाए जा रहा हूँ मैं
आत्मचिंतन कर गलतियों को
ढूंढ़ने लगा हूँ प्रिये
संजय श्रीवास्तव
बालाघाट (मध्य प्रदेश)