आतिशे फुरक़त में जलता मैं कि तू
——–ग़ज़ल———
छोड़कर तन्हा गया था मैं कि तू
प्यार को यूँ करके रुसवा मैं कि तू
ले रहा है कौन बदला मैं कि तू
किसने खाया ज़ख़्म गहरा मैं कि तू
खायी थीं कसमें मुहब्बत में कभी
आज उनको भूल बैठा मैं कि तू
फूल ख़ुद को कहने वाले ये बता
खार बनकर कौन चुभता मैं कि तू
हर ख़ुशी मिल जाये तुझको इसलिए
दर-ब-दर है कौन भटका मैं कि तू
किसकी आँखों में फ़क़त हैं रतजगे
आतिशे फुरक़त में जलता मैं कि तू
जो सुने “प्रीतम” न कोई भी कभी
बन गया ऐसा वो किस्सा मैं कि तू
प्रीतम श्रावस्तवी
श्रावस्ती [उ०प्र०]
9559926244