आतंक का जोर
मच रहा है बाहर बहुत शोर
आजकल आतंक का जोर
कोई नहीं हैं यहाँ सुरक्षित
होने चाहतें हैं सब आरक्षित
चोर बनने को हैं सब आतुर
कैसे बचेंगे शाह और ठाकुर
इंसान क्यों बन गया हैवान
कैसे बचेगा ईमान सम्मान
क्यों बन गए हैं सभी बेशर्म
कूकर्म करते नहीं आती शर्म
जो भी होता जिसका रक्षक
वहीं बन गया आज भक्षक
क्या कोई कुछ कर पाएगा
जब रक्षक भक्षक हो जाएगा
जब खाएगी बाड़ खेत को
कोन संभालेगा उस खेत को
सज्जन ही बन बैठे हैं दुर्जन
कौन बनेगा किसका सिरजन
सभी करलो सही सोच विचार
मानुष जन्म ना मिले बार बार
यही मौका कर निज में सुधार
वर्ना अन्तर्मन मिलेगा धिक्कार
यही है जीवनभर की कमाई
यदि यहाँ इन्सानियत कमाई
सुखविंद्र सिए मनसीरत