आतंकी
” आतंकी ”
—————
अमानुष वो
बने हुए हैं…..
रक्त-पिपासु
आतंकी |
ढ़ाल बनाकर
मजहब को
उसको कर देते
कलंकी ||
फेंक के चोला
मानवता का
तांडव करते हैं
दानव |
बच्चे देंखें……
ना वो बूढ़े !
फिर कैसे कहूँ ?
उनको मानव ||
भर लेते
जेहाद जहन में
थामें हाथों में
खंजर |
सुन्दर सब
एहसास मर गये
दिल हुआ उनका
बंजर ||
——————————-
– डॉ० प्रदीप कुमार “दीप”