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14 Jan 2022 · 1 min read

आतंकी

कभी शौक,कभी नासमझ तबाही।भटक रहे हैं क्यो भाई।
सवाल तो उठता है,जेहन में,
बसती जिंदगी इनकी भी,
ख्वाब संजोती इंसानियत का ।
क्यों उजड़नें। हैवानियत का बीज बोया करते ।
जो इंसान नहीं हैवान बन अपना शान समझते।
क्यों जलते और जलाते, अपने ही हाथों से कैसे ?
नींव बोया करते ।
जो जीवन में दर्द , खामोशी लिए घूमा करते ।
रखा ही क्या सिवा नफरत के, समझ में इनकी आ जाते।
क्या करूं बखान, दर्द ही दर्द इनका नाम।
ना मजहब ना ईमान,
सच्चाई से परेशान,
कहां जाएंगे अपने ही घरौंदो को उजाड़ कर।
किसके दिमाग से फुर्सत मिले तब ना
ढेंर कर अपना शरीर,बोझ बना डालते हैं।
खुद दफन के लिए रोते हैं।
बस छीनना इनका काम _ डॉ. सीमा कुमारी ,बिहार
‌‌‌( भागलपुर ) ये स्वरचित रचना मेरी दिनांक1-3-09,का है जिसे आज प्रकाशित कर रही हूं।

Language: Hindi
1 Like · 165 Views
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