आतंकवाद
एक वाद ऐसा भी दुनिया में
जो मानवता संहारी है ,
इंसां की साँसों से ज्यादा
दानवता जिसको प्यारी है ।
वो आतंकवाद ही है जिसने
एक मजहब को बदनाम किया
बच्चों को भी नहीं देखा जिसने
विद्यालय में ही संहार किया ।
विकसित हो या विकासशील
धर्म निरपेक्ष हो या सापेक्ष
कोई देश न इसने छोड़ा है ,
अमरीका से लेकर भारत तक
सब पर हमला बोला है ।
कोई मजहब न ऐसा चाहेगा
आतंक फैलाकर दुनिया में
तुम उसका प्रसार करो ,
आसमान से धरती तक तुम
मानव का संहार करो ।
मानव तो आखिर मानव है
दुनिया उससे ही चलती है ,
आतंकवाद के भय से भला
क्या प्रगति भी रुक सकती है ?
कौन समझाए इस वाद को
करनी को अपनी बंद करो ,
जियो चैन से दुनिया में तुम
और चैन से सबको जीने दो ।
डॉ रीता
आया नगर,नई दिल्ली-47