*आतंकवादी* दोहे
“आतंकवादी” दोहे
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(१) आतंकी सैलाब में,दैत्य चलाते नाव।
बंदूकी गोली लिए,देते तन मन घाव।।
(२)आतंकी मजहब नहीं,शतरंजी ये चाल।
नफ़रती तेज़ाब भर,उगल रहा विषकाल।।
(३)मानवता अब रो रही,दहल गया संसार।
कहर ज़ुल्म का झेलता, मनुज करे चीत्कार।।
(४)निंदा करने से नहीं, रुकता अत्याचार।
गोली सीने पर चला,करो वार पर वार।।
(५)पूत लिए निज अंक में,सिसक धरा बतलाय।
दानवता को रौंध कर,अब दो इन्हें जलाय।।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिक-साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी(मो.-9839664017)