आठ साल की आशिफा ……..
मासूम सी निगाहों में ,खौफ का वो मंज़र।
थी हैवानियत सवार,जो उन ज़ालिमों के अंदर।।
चीखती-चिल्लाती वो पुकारती रह रह कर ।
न कोई मददगार ,न था कोई रहवर ।।
हवस के इस भूख ने इंसानियत का खून कर दिया ।
उस मासूम को इस दुनिया से महरूम कर दिया ।।
किस बात की मिली सजा, क्या गलती उसने की थी।
अभी तो महज़ आठ साल की वो नन्ही सी कली थी ।।
सीखा कब था जीना ,इस दुनिया मे वो नयी थी ।
ख्वाहिशों के पंख लगा , उड़ने वो चली थी ।
अभी तो महज़ आठ साल की एक नन्ही सी परी थी।।
:- सैयय्द आकिब ज़मील (कैश)……..