आज
बीते कल को छोड़ो , आज को थाम लो ,
जो गुज़र चुका उसका क्यूँ ख़याल हो ?
कल की बातों का दिल में क्यूँ मलाल हो ?
कल क्या हो ये ‘इल्म नहीं , फिर क्यूँ सवाल हो?
आज को साध लिया, तो कल खुश़गवार बनेगा ,
आज को छोड़ दिया, तो कल सोगवार बनेगा ,
आज, ग़र फ़रेबे सराबों में भटकेगा ,
तब तय है मुस्तक़बिल अंधेरों में घिरेगा ।