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17 Feb 2023 · 1 min read

#आज

✍️

★ #आज ★

चुपचाप नदी के कूलों ने
पीछे को हटना सीख लिया
बलि चढ़ती देखी पेड़ों की
पहाड़ों ने सिमटना सीख लिया

माँ नर्मदा हुई बंदिनी
बिलखती है अकुलाती है
यमुना सतलज बहनों जैसे
संतानों से मिलने आती है

ब्रह्मपुत्र भटकता है रस्ता
जब याद जवानी आती है
देख के छिनती सांसें गंगा की
कोसी पछाड़ें खाती है

सांसों का आश्रय पवनदेव
विकास की कारा अधीन हुए
मोल से बिकती है वायु
जीवन के मोल क्षीण हुए

दाएं बाएं कोई बसे
किसी से न कोई नाता है
बैठ द्रुतगति यानों में
मानव किससे मिलने जाता है

छूट रहा है धर्म यहाँ पर
नियमों का पालन छूटेगा
वो दिन भी अब दूर नहीं
हिम का आलय टूटेगा

जनमन की कहने वालों को
मिलता नहीं है जोड़ यहाँ
राजा के रथ में कौन जुटेगा
इसकी लगती होड़ यहाँ

युगों ने गाए वेद-पुराण
इस युग की कोई ऐसी साध नहीं
नर-नारी अब सुमेल कहाँ
व्यभिचार जहाँ अपराध नहीं

हे नाथ ! सौंपा था जिसे
यह संसार चलाने को
मानव-बुद्धि का ठौर नहीं
प्रस्तुत निज नीड़ जलाने को . . . !

#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२

Language: Hindi
40 Views
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