52.....रज्ज़ मुसम्मन मतवी मख़बोन
रोज हमको सताना गलत बात है
एक स्त्री का प्रेम प्रसाद की तरह होता है,
चमकते चेहरों की मुस्कान में….,
चुप्पियाँ बढ़ती जा रही हैं उन सारी जगहों पर जहाँ बोलना जरूरी
क्या गिला क्या शिकायत होगी,
दिल की हसरत निकल जाये जो तू साथ हो मेरे,
आज वो दौर है जब जिम करने वाला व्यक्ति महंगी कारें खरीद रहा ह
आजकल लोग का घमंड भी गिरगिट के जैसा होता जा रहा है
శ్రీ గాయత్రి నమోస్తుతే..
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
''आशा' के मुक्तक"
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
#नित नवीन इतिहास
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
मगर हे दोस्त-----------------
स्वार्थों सहूलियतों के बांध
ग़ज़ल (मिलोगे जब कभी मुझसे...)