” आज साख फिर दांव लगी है “
उम्मीदों का शोर मचा है ,
लुटे खूब और हमें ठगा है /
एक छलावा प्रजातंत्र भी ,
भीगीं आँखें यहाँ सभी की /
है आया कोई स्वप्न जगाने ,
आज नई फिर आस जगी है //
सत्ता को नहीं आज समर्थन ,
अंदर- बाहर मिले प्रदर्शन /
चर्चा को स-शर्त तैयारी ,
ब्लेकमेल है मारा-मारी /
जनता ने जब साथ दिया है ,
आज उसी के साथ ठगी है//
घर में भी कभी ठगे से लगते ,
अपने ही विध्वंस जो करते /
देश -धर्म में भेद यहाँ है ,
धुंआ उठता यहाँ -वहां है /
कट्टरता जब रंग जमाये ,
समझो मन में रार मची है //
रोज पडोसी छल करता है ,
नये- नये रंग भरता है /
कभी मिले बम की धमकी है ,
कभी भेजता आतंकी है /
प्यार पगा कोई न्योता है तो ,
उसमें नीयत साफ नहीं है //
चर्चाओं का दौर विफल है ,
सत्ता वहां ,- नहीँ सबल है /
मान्य हमारे साक्ष्य नहीं है ,
इससे बड़ दुर्भाग्य नहीं है /
इधर शहादत फिर पूछेगी ,
आज हमारी किसे पड़ी है //
आज विश्व फिर चिंता में है ,
जगह जगह हथियार जमे है /
यहाँ- वहां है तानाशाही ,
मानवता पर पुती सियाही /
मैत्री के अब भाव नहीं है ,
आज दुश्मनी थाल सजी है //
बृज व्यास