आज लिखने बैठ गया हूं, मैं अपने अतीत को।
आज लिखने बैठ गया हूं, मैं अपने अतीत को।
स्मृतियां अनगनित है, जिन्दगी के मीत को।।
था कभी मुरझाया फूल, आज तरो तर हो गया हूं ,
लेकिन कांटों में आज भी ,मैं कही पर खो गया है।
याद आता है मुझे,वो काल सिंह समान था,
भाग्य की विडम्बना कहूं, या कहूं की कम ज्ञान था।
भुलकर भूलू नहीं गा, मैं अपनी रीत को ।।
आज लिखने……………
विगत समय की नाजुक हालत, दृष्टि पटल पर छा गई है,
बरसाती रात क्षण-भर के लिए ,अब भी दिल पर आ गई है।
समस्त दीवारें मिल गई थी ,छत में भी हुआ छेद था,
निंद्रा में तल्लीन थे सब ,फिर मौत में क्या भेद था।
मौत से बचकर सुबह सब ,भुनाने लगे प्रीत को।।
आज लिखने………………
स्वपन में देखता था कि, आसमान से गिर रहा हूं,
स्वपन आते हैं अब भी,लेकिन जमीन से ऊपर तैर रहा हूं।
बोझ उठाकर कन्धों पर, काफी दूर मैं आ गया हूं,
मानवता होने के नाते, आज मानव को मैं भा गया हूं।
गौरवान्वित हूं पाकर, जिन्दगी की जीत को ।।
आज लिखने……………….
था कभी मैं भुला- भुला, भूल भी सबब बन गई है,
भटकते हुए राहगीर को, अब मंजिल मिल गई है ।
लेकिन मंजिल पर आकर ,और मंजिल की तलाश है,
ताना बाना नया बुनते-बनते ,दिल में भी उल्लास है।
मन में उठी तरंग , गाऊं किसी गीत को।।
आज लिखने………………
सतपाल चौहान।