आज रिन्कू चली जायेगी
आज रिन्कू चली जायेगी। अपनी मम्मी के इलाज के लिए 3 बार, उनके न रहने पर चौथी बार आयी ये उसका सबसे लम्बा प्रवास रहा। अपने पापा के प्रति अपना फर्ज बहुत अच्छी तरह निभाया, ज्यादा से ज्यादा वक्त साथ रही अकेला नही छोडा, सभी काम जो उनकी मम्मी किया करती थी और वो भी जो नहीं करती थी, किये। कभी ये एहसास होने नही दिया अब मम्मी नही है। रक्षा बंधन पर्व पर मम्मी को छोडकर सभी लोग थे खासतौर पर बुआ जी जो कई सालों के बाद पर्व पर उपस्थिति थी, उल्लास के साथ मनाया गया पर लगा ऐसा कि ये सब रिन्कू की अगुवाई में हुआ। हरछठ और फिर छोटी बहन शिल्पी के जन्मदिन के लिए भी रूपरेखा बनाई, दक्षता और सुचारू कार्य प्रणाली से प्रबंधन भी किया। लग रहा था, सभी को पल पल उनकी मम्मी की कमी खल रही है और याद सता रही है लेकिन ताज्जुब है कि किसी की जुबान पर जिक्र नही आया, माहौल ही ऐसा बना दिया था।
रिन्कू घर की बडी बेटी, जिम्मेदार इतनी कि खुद को हर समय किसी न किसी काम मे व्यस्त रखती साथ ही छोटे भाई और बहनों को भी काम मे लगाये रखती। क्या मजाल जो कोई कहना न माने। वो अकेले ही एक मेले के बराबर होती, चहल-पहल, व्यस्तता और काम की भरमार न जाने कहां से पैदा हो जाती। किचिन मे नई डिश का प्रेपरेशन, घर की साफ-सफाई, साजो सामान व्यवस्थित करना जो देखने मे अच्छा लगे इसके साथ सजावट पर भी विशेष ध्यान रखना ये सब उसकी आदत मे शामिल है। अमूमन शादी के बाद बेटियां मायके मेहमान बनकर आतीं होटल/धर्मशाला समझ कर रुकती और चली जाती। जिस घर में पली बढ़ी, खेली कूदी, भाई बहनों के संग मस्ती की, पढी लिखीं लायक बनी, वही घर उन्हे अपना नही लगता। लेकिन रिन्कू की बात ही कुछ और है, उसने तो मायके को पहले की ही तरह अपना घर जाना समझा, और अभी भी उसी बडे होने के अधिकार से वैसा ही बर्ताव करती है।
दो संताने बडी बेटी सीनियर सेकेंडरी छोटा बेटा सेकेंडरी में होनहार छात्र, पति केन्द्रीय सरकार मे अधिकारी, साधन सम्पन्न, भगवान की दुआ से सब ठीक ठाक। वहां भी सबका ध्यान रखना, ऊच नीच समझाना बच्चों को संस्कार देना नित्य के क्रियाकलापों मे शामिल रहता है।
वापसी के टिकट का रिजर्वेशन आ गया है, 2 तारीख को जाना है। सभी चेहरे पर मुस्कराहट ओढ के उदासी छिपाने का दिखावा कर रहे है, मेरे तो आखों से आंसू बहने लगे, मेरी हालत देखकर वो भी रोने लगती है, गले लगाकर चुप कराता हूं।
आखिर आ गई वो तारीख जब उसे जाना है, शाम की गाडी है भारी मन से पैकिंग हो रही है। सभी अपने अपने कामों में लगे है कोई किसी से बात नही कर रहा है। सभी दुखी है पर बोल कुछ नही रहे है। जाने का समय आ गया सबसे मिलने के बाद मेरे पास भारी मन से बोली – ‘जा रही हूं पापा जी अपना ख्याल रखिएगा, फिर जल्दी ही आऊंगी।’ स्नेह की गागर छलक उठी, आंसू बहने लगे बिदाई की अंतिम बेला मे पिता पुत्री गले मिलते हैं, जाते जाते बेटी प्रश्न पूछती है – ‘बेटियों को शादी कर दूसरे घर क्यो भेजा जाता है ?’
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अश्वनी कुमार जायसवाल कानपुर 9044134297