आज मैं इंकलाब हूँ
मैं देशभक्तों के लहू में सना हुआ सुर्ख आफताब हूँ
आज मैं फिर मुखर हूँ, देखिए,आज मैं इंकलाब हूँ
उन प्राणों का मोल नहीं जो मातृभूमि पर शीश चढ़ा गए
स्वयं मिटा कर अपनी हस्ती,भारत माँ का मान बढ़ा गए
वतन की रक्षा करते-करते जो खुद वतन में ही समा गए
रण के आघातों में भी अपना मर्दाना सीना दिखा गए
ऐसे रणवीर जवानों की कथा-व्यथा का अमर किताब हूँ
आज मैं…………………………………………………….
पाकिस्तान के नापाक इरादों को दुनिया को जो बता गए
आतंकवाद मानवता का खतरा है जो हमें यह समझा गए
ऐसे कपटी पड़ोसी से रहना सजग हमेशा जो सीखा गए
पीठ पे वार करने वालों को गीदड़ है साले जो बतला गए
उन अमर शहीदों के रक्त के एक-एक कण का हिसाब हूँ
आज मैं……………………………………………………..
कश्मीर की खातिर कुत्ते, शेरों को अपना शिकार बना गए
जान, जवानी देकर जवान पाक का ख्वाब जो मिटा गए
केशर की घाटी में केशरिया बलिदानी परचम लहरा गए
अहिंसा के पुजारी वालों ,हमको हिंसा का पाठ पढ़ा गए
उस कायर,बुजदिल, डरपोक के घात का मुंहतोड़ जवाब हूँ
आज मैं………………………………………………………
पूर्णतः मौलिक स्वरचित सृजन
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर, छ.ग.