आज भी मुझे मेरा गांव याद आता है
आज भी मुझे मेरा गांव याद आता है
फरिश्ते पूरी करनी पड़ती है शहर में रहकर
मैं भले ही शहर में हूं लेकिन मेरा मन गांव में बसता है,
आज भी गांव मेरे ज़हन में बसता है
मुझे मेरा खेत याद आता
जहां मैं माता-पिता के साथ काम किया करता था
गांव के साथी मुझे याद आते हैं
जो हर पल साथ रहा करते थे
आज भी वो पल में ताजा करता हूं,
गांव की सादगी शहर में नहीं मिल पाएगी,
अपनेपन का वह भाव गांव में है जनाब
गांव का खुशनामा पल याद आता है मुझे,
गांव की चलती मधुर हवा
स्वच्छ जल से भरी हुई मटकी
कहां मिलती है शहर में इसकी उपलब्धता,
चलो फिर गांव में आनंदित पल का का इजहार करने
मेरे मन में यह विचार बार-बार उठना है
आज भी मुझे मेरा गांव याद आता है।
प्रवीण सैन, नवापुरा ध्वेचा
बागोड़ा ( जालोर)