आज मानवता दम तोड़ रहीं हैं
आज मानवता एक बार
फिर शर्मसार हो गई है।
इंसान को इंसान होने
पर प्रश्न लग गई है।
इंसान की इंसानित
आज कहाँ खो गई है !
लगता है जैसे उसकी
आत्मा अब मर गई है ।
इंसान से हैवान बनने
का सफर शुरू हो गया है,
और उसने इस सफर को
बड़ी तेजी से सफर किया है।
क्यों उसके मन में आज इतना ,
क्रोध और गुस्सा भरा है !
क्यों मारने से पहले वह
अब सोच भी नहीं रहा है!
क्यों मरने वाले का दर्द
अब उसे दिखाई नहीं देता है !
क्यों मरने वाले का चीख-पुकार
उसे नही सुनाई देता है !
क्यों मारने से पहले अब
उसका हाथ नहीं काँपता है !
क्यों उसकी अंतर आत्मा अब
झकझोरती नही है!
क्यों किसी के खून बहाने में ,
अब वह हिचक नही रहा है !
क्यों किसी को जलाने में भी
अब वह पीछे हट नहीं रहा!
आज इंसानियत का कौन सा
दौर आ गया है!
जहाँ प्यार पर नफरत
भारी पर रहा है।
क्यों मन का प्यार अब
नफरत में बदल गया है ।
क्यों इंसानित पर आज
कफन ओढा दिया गया है!
अब तो बच्चे- बुर्जग, औरत को भी
छोड़ा नही जा रहा है ।
अब इंसानियत अपने निचले स्तर
पर गिर गया हैं!
यह कौन सा दौर आ गया हैं,
लगता है अब घोर कलयुग
आ गया है!
~अनामिका