आज भी माँ क़ब्र से लोरी सुनाती है मुझे
सो रही है प्यार से मिट्टी की चादर ओढ़कर
आज भी माँ क़ब्र से लोरी सुनाती है मुझे
दूर अंबर में बसेरा है मेरी माँ का मगर
आज भी वो दिल के कोने में बसाती है मुझे
भूख से बेज़ार होकर जब पुकारा है उसे
भीगी पलकों से निहारे थपथपाती है मुझे
जब कभी तन्हा हुआ ये दिल ज़माने से ख़फ़ा
बनके झौंका याद का वो गुदगुदाती है मुझे
जब कभी घायल हुआ और दर्द से चीख़ा हूँ मैं
चूमकर माथे को मरहम वो लगाती है मुझे
जब कभी मायूस करती हैं मुझे नाकामियाँ
ख़्वाब में आकर वही ढाढस बंधाती है मुझे
जब कभी आते हैं तूफ़ान घेरने दिल को मेरे
लड़ती तूफ़ानों से आँचल में छुपाती है मुझे
बनके परछाई वो हर पल साथ चलती है मेरे
अब जुदा करके दिखा क़िस्मत मेरी माँ से मुझे
नीतू ठाकुर
प्रतापगढ़ (उत्तरप्रदेश)