आज फिर बैठा हूँ…..
आज फिर बैठा हूं
कलम से उनके जुल्फ सवारने के लिए
चल दिया
उनके काजल को ग़ज़ल में उतारने के लिए
बहुत आसान लगता होगा?
कितने जतन होते है
उनके होंठो से शायरी गुजारने के लिए।
आज फिर बैठा हूं
कलम से उनके जुल्फ सवारने के लिए
चल दिया
उनके काजल को ग़ज़ल में उतारने के लिए
बहुत आसान लगता होगा?
कितने जतन होते है
उनके होंठो से शायरी गुजारने के लिए।