है आया पन्द्रह अगस्त है।।
न मोल तोल आज़ादी का, इसका नशा मस्त है।
हाँ आया वो अगस्त, है आया पन्द्रह अगस्त है।।
तोड़ के जंजीर पग की, बेड़ियाँ गुलामी वाली।
मेरे हिन्द के सपूतों से, होते दुश्मन हर पस्त है।।
हर्षित हो आज मगन, दिल है गर्व से पुकारता।
हाँ आया वो अगस्त, है आया पन्द्रह अगस्त है।।
मार मार काट काट, हो कर के लहूलुहान।
अगणित शहीदी से, आया यह स्वाभिमान।।
कितने बलि बेदी चढ़े, भारत के नौजवान।
सींचि माटी खून से, वो दे गए जो बलिदान।।
भारत के वीरों से, गुलामी का किला ध्वस्त हैं।
हाँ आया वो अगस्त, है आया पन्द्रह अगस्त है।।
झूम झूम चुम गए, फाँसी को कितने दुलारे।
बाँकुरे मेरे देश के, सिक्ख गुरु पँच प्यारे।।
कितने सुहागिनों के, सिंदूरी सजते सीतारे।
लाठी बूढ़े बाप की, माँ के आखों के तारे।।
जिनकी कुर्बानियों का, हुआ न सूर्य अस्त है।
हाँ आया वो अगस्त, है आया पन्द्रह अगस्त है।।
ये पन्द्रह अगस्त हुआ, सन उन्नीस से खाश है।
माथे की कालिख मिटा कर, रचा इतिहास है।।
मुक्त हो गयी थी घाटी, टूटा 370 का पाश है।
एक निशान एक बिधान का, सार्थक प्रयास है।।
करोडों भारतीय लो, जश्ने आजादी में व्यस्त है।
हाँ आया वो अगस्त, है आया पन्द्रह अगस्त है।।
“चिद्रूप” है स्वयं अदना सा, बोले बड़े बोल क्या।
किसकी कुर्बानी कितनी, इसका तोल-मोल क्या।।
हर घर तिरंगा लगे, दिखता इसमे तुझे झोल क्या।
परचम ये छूये अम्बर, जलसा इससे अनमोल क्या।।
महोत्सव आज़ादी का ये, कितना जबरदस्त है।
हाँ आया वो अगस्त, है आया पन्द्रह अगस्त है।।
©® पाण्डेय चिदानन्द “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित :- १४/०८/२०१९-१३/०८/२०२१)