आज तुम्हें फिर…
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/912f5fbd23e0125706e2b17860977929_0fc294cf2eb6b72f5ba7bf2a7090890a_600.jpg)
आज तुम्हें फिर देखा हमने….
आज तुम्हें फिर देखा हमने,
तड़के अपने ख्वाब में।
छुप कर बैठे हो तुम जैसे,
मन के कोमल भाव में।
किस घड़ी ये जुड़ गया नाता।
तुम बिन रहा नहीं अब जाता।
कब समझे समझाने से मन,
हर पल ध्यान तुम्हारा आता।
जहाँ भी जाएँ, पाएँ तुम्हें,
निज पलकन की छाँव में।
क्यों तुम इतने अच्छे लगते।
मन के कितने सच्चे लगते।
छल-कपट से दूर हो इतने,
भोले जितने बच्चे लगते।
मरहम बनकर लग जाते हो,
जग से पाए घाव में।
तुम पर कोई आँच न आए।
बुरी नजर से प्रभु बचाए।
स्वस्थ रहो खुशहाल रहो तुम,
दामन सुख से भर-भर जाए।
साजे पग-पग कमल-बैठकी,
चुभे न काँटा पाँव में।
नजर चाँद से जब तुम आते।
मन बिच कैरव खिल-खिल जाते।
भान वक्त का जरा न रहता,
बातों में यूँ घुल-मिल जाते।
यूँ ही आते-जाते रहना,
मेरे मन के गाँव में।
आज तुम्हें फिर देखा हमने…
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
“मनके मेरे मन के” से