आज तुम्हारे होंठों का स्वाद फिर याद आया ज़िंदगी को थोड़ा रोक क
आज तुम्हारे होंठों का स्वाद फिर याद आया ज़िंदगी को थोड़ा रोक कर आज मैं दिल से मुस्कुराया
बीती जो शामें तेरे साथ, दिल के किसी कोने में दबी आज भी हैं
खुशबू तेरे इश्क़ की आती मेरे जिस्म से आज भी है
सूनी-सूनी ये खिड़कियां मेरे घर की बुलाती तुझे आज भी हैं
पड़ती है जो बारिश कभी मेरे शहर में
खोल के दरवाजा आँखें तुझे पुकारती आज भी हैं
लेकिन अब……..
खुद के आंसू खुद से ही छुपाना सीख गया हूँ
जो न लौटकर आएगा उसे भुलाना सीख गया हूँ
ज़िन्दगी में आगे बढ़ना न सीख पाया हूँ
तेरे बिन अब ज़िन्दगी गुजरना सीख गया हूँ …..!!