आज तिलिस्म टूट गया….
मानो एक समय से थी मैं
एक तिलिस्म के घेरे में ।
जहां सारी दुनिया मेरी थी
आंखों में स्वप्न घनेरे थे ।
पूरा सा था मेरा जीवन
रिश्तों में बंधा हुआ था मन ।
पर तिलिस्म अब टूट गया
हाथों से मुक्तक छूट गया ।
स्वप्न हुए निर्वासित सब
हृदय टूट कर बिलखा जब I
क्या अब तक जो था सब भ्रम था ?
झूठा सारा जड़ जंगम था ।
अब नयन मूंद रहना भ्रम में
साहस न जाऊं धरातल में ।
जड़ जीवन का स्पन्दन था
वो भ्रम ही सही सर्वोत्तम था ।