आज तलक जिंदा वो मुझ में।
एक शख्स
जिसने बचपन मे
थाम अपनी उंगली,
चलना सिखाया मुझे,
अपने गोदी में खिला,
हँसना सिखाया मुझे,
एक एक अक्षर लिख,
लिखना पढ़ना सिखाया मुझे,
आज तलक जिंदा वो मुझ में,
पिता जिसे में कहता था,
हर पल हर सांस में,
साथ मेरे वो रहता था,
अचानक से आई काल रात्रि,
छीन लिया सिर से साया
आज तलक जिंदा वो मुझ में,
भले खत्म हो गयी उसकी काया।
मुकेश गोयल ‘किलोईया’
©Kiloia