आज तन्हा है हर कोई
जुबाँ की बात सब हैं सुनते,
मन की बात न सुनता कोई ।
हाल तो सब पूछते हैं मगर,
खबर यहाँ नही लेता कोई ।
सब चेहरे पढने की दावा हैं करते,
मन यहाँ नही पढता कोई ।
भीड़ में रहकर भी आज,
तन्हा जी रहा है हर कोई ।
खुशी तो बाँट लेते हैं सब ,
गम नही बाँटता है कोई।
जीने के लिए जी रहें हैं सब,
पर जिदंगी कहाँ जीता है कोई।
सही-गलत को देखकर भी,
आज खामोश है यहाँ हर कोई।
सब एक-दूसरे में कमियां ढूँढते है
अपने अन्दर की कमियों को
दूर करता नही है कोई।
बड़ी बड़ी बातें सब करते है
लेकिन इसे स्वयं अपनाता कहा है कोई।
अनामिका