आज गज़ल को दुल्हन बनाऊंगा
आज गज़ल को दुल्हन बनाऊंगा,
यूं शब्दों का हुनर आजमाऊंगा!!
यूं शर्माएगी जब गज़ल घूँघट ओढ़े,
उठते हुए स्वरों का समां चढ़ाऊंगा!!
कविता की रानी बन उठेगी दुल्हना,
हर कूदकों में ढल कर बनेगी मैना!!
संग स्वरों के, मंत्रमुग्ध रागों की बौछार में,
प्यार की अनंत गहराइयों में ले जाऊंगा!!
प्रेम की पंक्तियाँ सुनकर मधुरता छाएगी,
आँखों में स्वप्न की मीठी नींद बस जाएगी!!
मेरे अल्फाज़ तरानों में यूं गुम हो जाएगी,
सुंदरता की परिभाषा, नया अर्थ पाएगी!!
उसे सुर संगीत की मलिका बना देंगे हम,
स्वरों का पहर बन उठेगा उसका दामन!!
सुर-ताल को यूं पीछे छोड़ कर न आऊंगा,
प्रेम की खुशबू सबके दिलों में बिखराऊंगा!!
©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”