आज के रिश्ते
[4/27, 11:36 PM] Dr Naresh Kumar Sagar: घर में भाईचारे कहां अब जिंदा है
रिश्तों से रिश्ता बडे शर्मिदां है
मां बाप को रख दिया है ताक पर
वृद्ध आश्रम तभी तो अब भी जिंदा है
पति-पत्नी का प्यार कहां आदर्श रहा
अलगाव का रहता दिल में परिंदा है
बहन की राखी भारी भारी लगती है
साली का बस ख्याल बडा ही गंदा है
भाई को भाई गिराने में माहिर
राम लखश का प्यार बडा शर्मिंदा हैं
गेरों से ज्यादा डर लगता अपनों से
ज़हर पनपता रोज जो मंदा मंदा है
रिश्तों की जब बात कभी घर होती है
लगता है ्यापार सभी कुछ धंधा है
बोली बनी है शूल बराबर चुभती है
अलग मने त्यौहार दीवाली अंधी है
संकट में पडे भाई देख भाई हंसे
प्रेम म़ह की चांद बहुत अब गंजी है
एक आंगन में चार खड़ी है दीवारें
फिर भी मारामार
[4/27, 11:42 PM] Dr Naresh Kumar Sagar: खून के रिश्ते खून के प्यासे लगते है
बात बात पै सडक के बीच झगडते हैं
गैरो की बातों में आकर रिश्ते तोड़े
कचहरी में रगड़े खूब रगड़ते हैं
===28/04/2020
डॉ नरेश सागर