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20 Aug 2019 · 1 min read

आज के रिश्ते

आज के युग के रिश्तों के माइने
कुछ इस कदर बदल गए हैं कि
चोली दामन का साथ सा रिश्ते भी
कुर्ते-पजामे से ढीले हो गए हैं
जो कभी गत काल मे फेविकोल के
जोड़ से कसावट मे जड़ें होते थे
आज बैंक की रूकी किश्तो समान
स्वार्थ,ईर्ष्या और मोह मे थम से गए हैं
जो कभी किसी कुल कबीले की
आन-बान और शान हुआ करते थे
आज इस निजयुग के दौर मे
ओपचारिकता की भेंट चढ गए हैं
जिनको निभाने, बताने व अपनाने मे
मन आनन्दित प्रफुल्लित हो जाता था
अब मात्र पास गुजरने-दिखने से ही
दिल दुखी और व्यथित हो जाता है
कभी धागों की डोर मे बन्धने वाले
अब अनवरत गाँठों मे गँठ गए हैं
बरगद की छाँव मे फलने फूलने वाले
भौतिकता की चकाचौंध की लहर मे
बहकर आस्तित्वहीन-निढाल हो गए हैं
महत्वाकांक्षा अग्नि मे तार तार हो गए हैं

सुखविंद्र सिंह मनसीरत

Language: Hindi
3 Likes · 225 Views
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