आज के रिश्ते: ए
आज के रिश्ते: ए
आज के रिश्ते,एक अजीब कहानी,परिवार का साथ,अब न रहा मानी।
साथ रहकर भी, पास नही रहते,विचारों की दीवार, बीच में खड़ी रहते।
समझ नही बना पाते, छोटे झुकते नही,बढ़े झुकने की, कोशिश करते नही।
चार दीवारों में, संस्कार दम तोड़ते,सब्र और इंसानियत, धीरे धीरे खोते।
रिश्ते, वक्त और व्यवहार के लिए,अब नही रहा कोई, अपनापन और प्यार के लिए।
क्या होगा इन रिश्तों का भविष्य?क्या खो गया है हमसे?
क्या ढूंढ सकते हैं हम, रिश्तों में खोई हुई खुशी?
यह सवाल है, हर इंसान के लिए,