आज की नारी हूँ
युग बदला ,
अब मैं भी बदल गई हूँ।
मैं आज की नारी हूँ।
स्वाभिमान से जीने लगी हूँ।
पुरुषो के कदम से कदम
मिलाकर चलने लगी हूँ।
अब मैं भी कंधो का भार
बराबर उठाने लगी हूँ।
अब मैं भी अपने पैरों
पर खड़ी हो गई हूँ।
अब कहाँ मैं घर तक
सिर्फ सीमित रह गई हूँ।
तोड़ चली सारी जंजीरे
आगे मैं बढ़ चली हूँ।
अब कहाँ पीछे मुड़कर
फिर मैं देखने वाली हूँ।
अब कहाँ मैं फिर से
थमने वाली हूँ ।
अब कहाँ मैं फिर से
रूकने वाली हूँ।
अब कहाँ मैं किसी के
आगे झुकने वाली हूँ।
अब कहाँ मैं फिर से
पीछे हटने वाली हूँ।
अब मैं कहाँ किसी पुरुष
से पीछे रह गई हूँ।
कौन सा ऐसा काम हैं
जो मैं ना कर रही हूँ।
अब मैं भी सीमा पर
डटकर खड़ी रहती हूँ।
आए कोई दुश्मन अगर
उसका सर धर से अलग कर देती हूँ।
अब कहाँ किसी से मैं
डर – डरकर जीती रहती हूँ।
अब मैं डटकर हर चीजों का
मुकाबला करती हूँ।
सिर्फ मुक़ाबला ही नही करती
जितती भी हूँ मैं।
अब सब कुछ मैं अपने
दम पर करती हूँ।
अब मैं भी सड़कों पर
गाड़ी दौड़ाती हूँ।
कार ,बस ,ट्रक और ट्रेन
तक को मैं चलाती हूँ।
अब हवा के साथ मैं भी
उड़ती -फिरती हूँ।
कोई भी ऐसा वायुयान नही
जो मैं नही उड़ाती हूँ।
कोई भी ऐसा काम नहीं
जो मैं नही कर पाती हूँ।
कोई ऐसा क्षेत्र नही,
जहाँ मैं नही अब होती हूँ।
बड़े-बड़े फैक्टरियों को
अब मैं चलाने लगी हूँ।
सिर्फ चलाने ही नही
उसको दौड़ाने भी लगी हूँ।
ज्ञान के क्षेत्र में भी अपना
नाम बनाने मैं लगी हूँ।
डॉक्टर, इन्जीनियर, आई•ए•एस•
तक का पद पाने मैं लगी हूँ।
खेल की दुनियाँ में भी हमने
अपना झंडा गाड़ दिया है।
अब कहाँ हम घर में
छुप कर बैठने वाले हैं।
अब अंतरिक्ष में भी
मैं जाने लगी हूँ ।
आसमान की ऊंचाई
को भी नापने लगी हूँ।
अब मैने भी अपना
पहचान बना लिया है।
शान के साथ जीना
मैनें भी सीख लिया है।
पुरुषो से कंधा मिलाकर
मैं भी काम कर रही हूँ।
अब मैं भी अपना नाम
बना रही हूँ।
खुशी इस बात की हैं हमे कि
मैं अपना अबला रूप मिटाने लगी हूँ।
अब अपना परचम
मैं भी लहराने लगी हूँ।
मैं आज की नारी हूँ।
-अनामिका