आज की दुनिया
अजीब हाल है इस दुनिया का
किस रास्ते पर जा रहे हैं लोग
एक दूसरे को नीचे गिराते हुये
ज़िंदा लाशों की सीढ़ी बनाते हुए
उपर चढ़े जा रहें हैं लोग ,
इन्हें मालूम नही
बढ़ रहे हैं हम वहीं
जहाँ से सबको गिराते हुये
चढ़ाई शुरू की थी अभी
अंत मालूम नही फिर भी
चढ़ाई करेगें ये ज़रूर सभी ,
क्योंकि दुनियाके कण – कण में
बस गयी है ये बात
बस उपर पहुँचना है
चाहे छोड़नी पड़े अपनी पहचान
कर्मों में कंस के समान ,
अब बदल नही सकती ये दुनिया
क्योंकि फिर से करनी पड़ेगी
सृष्टि ब्रम्हा को
और भेजना पड़ेगा धरती पर
एक नये आदम और हौवा को ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 07/12/83 )